■ मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

1950 के दशक में हावर्ड यूनिवर्सिटी के विख्यात साइंटिस्ट कर्ट रिचट्टर ने चूहों पर एक अजीबोगरीब शोध किया था।

कर्ड ने एक जार को पानी से भर दिया और उसमें एक जीवित चूहे को डाल दिया। पानी से भरे जार में गिरते ही चूहा हड़बड़ाने लगा और जार से बाहर निकलने के लिए लगातार ज़ोर लगाने लगा।

चंद मिनट फड़फड़ाने के पश्चात चूहे ने जार से बाहर निकलने का अपना प्रयास छोड़ दिया और वह उस जार में डूबकर मर गया।

कर्ट ने फ़िर अपने शोध में थोड़ा सा बदलाव किया।

उन्होंने एक दूसरे चूहे को पानी से भरे जार में पुनः डाला। चूहा जार से बाहर आने के लिये ज़ोर लगाने लगा।

जिस समय चूहे ने ज़ोर लगाना बन्द कर दिया और वह डूबने को था ठीक उसी समय कर्ड ने उस चूहे को मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया।

कर्ड ने चूहे को उसी क्षण जार से बाहर निकाल लिया जब वह डूबने की कगार पर था।

चूहे को बाहर निकाल कर कर्ट ने उसे सहलाया कुछ समय तक उसे जार से दूर रखा और फिर एकदम से उसे पुनः जार में फेंक दिया।

पानी से भरे जार में दोबारा फेंके गए चूहे ने फिर जार से बाहर निकलने की अपनी जद्दोजहद शुरू कर दी। लेकिन पानी में पुनः फेंके जाने के पश्चात उस चूहे में कुछ ऐसे बदलाव देखने को मिले जिन्हें देख कर स्वयं कर्ट भी बहुत हैरान रह गए।

कर्ट सोच रहे थे कि चूहा बमुश्किल 15 – 20 मिनट तक संघर्ष करेगा और फिर उसकी शारीरिक क्षमता जवाब दे देगी और वह जार में डूब जाएगा।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

चूहा जार में तैरता रहा। अपना जीवन बचाने के लिये लगातार संघर्ष करता रहा।

60 घंटे, जी हाँ! 60 घँटे तक चूहा पानी के जार में अपने जीवन को बचाने के लिये संघर्ष करता रहा।

कर्ट यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए।

जो चूहा महज़ 15 मिनट में परिस्थितियों के समक्ष हथियार डाल चुका था, वही चूहा 60 घंटों तक कठिन परिस्थितियों से जूझ रहा था और हार मानने को तैयार नहीं था।

कर्ट ने अपने इस शोध को एक नाम दिया और वह नाम था…
“The HOPE Experiment”

Hope…यानि आशा।

कर्ट ने शोध का निष्कर्ष बताते हुए कहा कि जब चूहे को पहली बार जार में फेंका गया तो वह डूबने की कगार पर पहुंच गया। उसी समय उसे मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया गया। उसे नवजीवन प्रदान किया गया।

उस समय चूहे के मन मस्तिष्क में “आशा” का संचार हो गया। उसे महसूस हुआ कि एक हाथ है जो विकटतम परिस्थिति से उसे निकाल सकता है।

जब पुनः उसे जार में फेंका गया तो चूहा 60 घँटे तक संघर्ष करता रहा।

वजह था वह हाथ, वजह थी वह आशा, वजह थी वह उम्मीद।

इसलिए हमेशा उम्मीद बनाए रखिए, संघर्षरत रहिए,
सांसे टूटने मत दीजिए, मन को हारने मत दीजिए।

जीत अंततः आपकी होगी या नहीं ये नियति पर छोड़ दो बस।

एक सपने के टूट जाने के बाद दूसरा सपना देखना ज़िन्दगी है। यही बात समझाती हैं ज़िंदगी, यही बात समझाते हैं संघर्ष। फिर हम सीखते हैं और देखते हैं हर दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवे, सातवें सपने के टूट जाने के बाद, सपना देखना ज़िंदगी है।

बम्बई, मद्रास, बेंगलुरु, दिल्ली, दुबई जैसी या किसी इंटरव्यू में रिजेक्ट होकर हज़ारों जगह से तुम कितनी बार खाली हाथ आओगे नहीं पता! कितनी बार सपने टूटेंगे, नहीं पता। कितनी बार धोखे खाओगे, नहीं पता। कितनी बार ज़लील होकर अपनी ही नज़रों में बार औंधे मुंह गिरोगे, इस “कितने बार” का कोई निश्चित “बार” नहीं है।

कभी कभी तो इन ‘बार’ के लिए ज़िंदगी छोटी पड़ जाती है। तुम्हारे गर्भ में आने से पहले और चिता में चले जाने के बाद भी तुम्हारे नाम पर ये “बार” होते रहेंगे। अपने अपने “बार” के लिए तैयार रहो। सुबह उठकर अपनी दुकान खोल लो, तैयार होकर ऑफि़स चले जाओ, शोरूम पर टाइम पर चले जाओ, घर के बीमार आदमी को हॉस्पिटल ले जाओ, काम करते रहो, गिरते रहो, गिरकर उठते रहो बस यही ज़िंदगी है।

क्या पता कब कौन सा हाथ आपको उस स्थिति से बाहर निकाल दे! वो हाथ ईश्वर का भी हो सकता है, आपके दोस्त का, आपके प्रियजन का या वो हाथ आपके माइंड की The Preparation Stage का भी हो सकता है, जो आपको आकर बचा लेगा। आपको नवजीवन प्रदान कर देगा।

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