
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस:-
कुछ रिपोर्ट्स पढ़ी हैं, जिनमें संभावना जताई जा रही है कि Artificial intelligence के कारण भारत में 4.4 करोड़ पुरुष और 1.2 करोड़ महिलाएं अपनी नौकरी से हाथ धो सकती हैं। यह डाटा उस क्षेत्र में कार्यरत नौकरीपेशा लोगों की गणना करके लिया गया है जिसमें सबसे अधिक Artificial intelligence के प्रयोग में लाने की संभावना है। इनमें काल सेंटर में कार्यरत सभी लोग, बैंक एंप्लॉयज, रेलवे स्टेशन में कार्यरत पूछताछ से लेकर काउंटर पर काम करने वाले सभी लोगों के साथ साथ सभी विभागों की नौकरी ऐसे ही चली जाएगी जैसे AI के कारण गूगल में नौकरी जा रही है।
गूगल लगातार अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रहा है क्योंकि उनका काम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कर रही हैं। ना सेलरी, ना बोनस, ना पीएफ ना पेंशन, ना टीए, ना डीए ना खिच खिच। दरअसल एआई यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जिसका अर्थ है कृत्रिम बुद्धिमत्ता। यह कंप्यूटर विज्ञान का एक नया अध्याय है जिसमें मशीनों में इंसान जैसी बुद्धि डाली गई है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा मशीनों में लगातार सीखने और अपने अनुभव से सीखने की क्षमता है। यहां तक कि एआई मशीनें निर्णय लेने में सक्षम होती हैं और बहुत हद तक समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होती हैं। अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार के लिए अलग अलग भाषाओं के द्विभाषी सभी कंपनियां रखती थी, मगर अब उनकी नौकरी भी खतरे में है और एआई मशीनें भाषा समझने और प्रतिक्रिया देने में सक्षम होती हैं।
आपने अक्सर देखा होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्लादिमीर पुतिन, शी जिनपिंग और बाइडन आमने-सामने बैठकर या चलते फिरते अपनी अपनी भाषा में बात करते हैं, यह AI तकनीक का कमाल है कि ईयरबड के माध्यम से AI उन्हें उनकी भाषा में ट्रांस्लेट करके बात तुरंत पहुंचा देता है। कहने का अर्थ यह है कि यहां भी कम से कम द्विभाषी की नौकरी गई और ऐसा हर बिजनेस के आटोमेशन में, स्वास्थ्य विभाग में, शिक्षा विभाग में, वित्तीय कंपनियों में, परिवहन में, रेलवे के तमाम गार्ड और ड्राइवर, होम अप्लाएंसेज़ और इंटरटेनमेंट के क्षेत्र में लोग बेरोजगार होने जा रहे हैं। यद्यपि इससे लाभ तो बहुत हैं, इसके कारण काम में एक्यूरेसी होगी, मानवश्रम नहीं होगा तो लागत में कमी आएगी इत्यादि इत्यादि।
जब 1950 के बाद जब देश अपने पैरों पर खड़ा हो रहा था, देश में कल कारखानों का निर्माण हो रहा था तब उसी दौर में 1957 में दिलीप कुमार और वैजयंती माला की ऐतिहासिक फिल्म “नया दौर” आई थी तो नायक ने मानवश्रम की जगह मशीनों के इस्तेमाल के खिलाफ आंदोलन किया था और जनता ने उसे इतना पसंद किया कि दिलीप कुमार महान बन गए।

बिजली बनाने के लिए जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में जब तमाम जगहों पर बांधों और पनचक्कियों का निर्माण हो रहा था और भाखड़ा बांध बन रहा था, तब कई जगह किसानों ने आंदोलन किया और इनमें किसान नेता इस बात को कहते थे कि “बिजली बनने के बाद पानी की ताकत समाप्त हो जाती है, पानी से बिजली निकाल लेने के बाद पानी सिंचाई के लिए बेकार हो जाता “
भारत में कंप्यूटर क्रांति के जनक राजीव गांधी जब देश में कंप्यूटर और संचार क्रांति को जन्म दे रहे थे तब अटल बिहारी वाजपेई कंप्यूटर का विरोध करने बैलगाड़ी पर बैठकर संसद भवन पहुंचे थे।
-सुदेश आर्या