प्रश्न : Zen क्या है?
उत्तर : भूख लगे तब खा लो, नींद आए तब सो जाओ।
सुनने में आसान बात लगती है, लेकिन हम कितनी बार ऐसा कर पाते हैं? क्या हर बार हमें भूख लगती है तब हम खा पाते हैं या भूख को काटते हैं? क्या हर बार जब हमें नींद आ रही होती है तब हम सो पाते हैं या नींद को टालते हैं? प्रकृति ने हमें बहुत सहज ज़िंदगी दी थी, लेकिन हमनें उसे जटिलताओं से भर दिया।
गांधी ने ठीक ही कहा था कि इंसान की ज़रूरतों के लिए पृथ्वी पर पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं, लेकिन ये इंसान के लालच की पूर्ति नहीं कर सकती।
बाज़ार हमें मजबूर कर रहा है कि हम हमारी ज़रूरतों को बेवजह बढ़ाएं। आप ही सोचिए कि ये कहां की समझदारी है कि हम मानसिक या शारीरिक मेहनत करके, शरीर को थकाकर, दिमाग़ी तनाव से गुजरकर पैसा बनाएं और फिर उस पैसे से बाजार द्वारा सुझाई गई ऐसी चीज़ खरीद लें जिसके बिना भी हम आराम से जी रहे थे। आख़िरकार वो पैसा गया किसकी जेब में? इतनी मेहनत आपने किसके लिए की थी?
बेवजह बाज़ार के बहकावे में ना आएं। ज़िंदगी जितनी हो उतनी सहज रखें। परिवार, समाज, रिश्तेदारी में इतना भी ना उलझें कि निकल ना पाएं।
ज़िंदगी कम से कम इतनी आसान और सहज तो होनी ही चाहिए कि हम भूख लगे तब खा सकें, जब नींद आए तब सो जाएं। अपनी इच्छा से जी सकें, हर चीज़ का आनंद ले सकें और वो हर चीज़ जो आपको प्रफुल्लित रखती है, उसके सम्पर्क में रह सकें।
वरना बाज़ार का क्या है वो तो Zen नाम से भी एक कार बना चुका है।
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