
बुजुर्ग पिताजी जिद कर रहे थे कि, उनकी चारपाई बाहर बरामदे में डाल दी जाए। बेटा परेशान था, बहू बड़बड़ा रही थी। कोई बुजुर्गों को अलग कमरा नहीं देता, हमने तो दूसरी मंजिल पर कमरा भी दिया, एसी, टीवी, फ़्रिज़ सब सुविधाएं हैं, नौकर भी दे रखा है। पता नहीं, सत्तर की उम्र में सठिया गए हैं।
पिता कमजोर और बीमार हैं। जिद कर रहे हैं, तो उनकी चारपाई गैलरी में डलवा ही देता हूँ, निकित ने सोचा। पिता इच्छा की पू्री करना उसने स्वभाव बना लिया था।
अब पिता की एक चारपाई बरामदे में भी आ गई थी। हर समय चारपाई पर पड़े रहने वाले पिता अब टहलते टहलते गेट तक पहुंच जाते। कुछ देर लॉन में टहलते, लॉन में नाती – पोतों से खेलते, बातें करते, हंसते बोलते और मुस्कुराते। कभी-कभी बेटे से मनपसंद खाने की चीजें भी लाने की फरमाइश भी करते। खुद खाते, बहू – बेटे और बच्चों को भी खिलाते। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य अच्छा होने लगा था।
दादा ! मेरी बाल फेंको! गेट में प्रवेश करते हुए निकित ने अपने पाँच वर्षीय बेटे की आवाज सुनी, तो वह अपने बेटे को डांटने लगा! अंशुल बाबा बुजुर्ग हैं, उन्हें ऐसे कामों के लिए मत बोला करो।
पापा! दादा रोज हमारी बॉल उठाकर फेंकते हैं.
अंशुल भोलेपन से बोला।
क्या…?”निकित ने आश्चर्य से पिता की तरफ देखा।
पिता- हां बेटा तुमने ऊपर वाले कमरे में सुविधाएं तो बहुत दी थी, लेकिन अपनों का साथ नहीं था। तुम लोगों से बातें नहीं हो पाती थी। जब से गैलरी में चारपाई पड़ी है, निकलते बैठते तुम लोगों से बातें हो जाती हैं। शाम को अंशुल -पाशी का साथ मिल जाता है।
पिता कहे जा रहे थे और निकित सोच रहा था, बुजुर्गों को शायद भौतिक सुख सुविधाओं से ज्यादा अपनों के साथ की जरूरत होती है।
बुज़ुर्गों का सम्मान करें, यह हमारी धरोहर हैं और अपने बुजुर्गों का ख़्याल हर हाल में अवश्य रखें। यह वो पेड़ हैं, जो थोड़े कड़वे हैं, लेकिन इनके फल बहुत मीठे हैं और इनकी छांव का कोई मुक़ाबला नहीं।
