8 नवंबर 2024 को सेवा निवृत्त हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ दो साल पहले बहुत उच्च मोरल ग्राउंड लेकर भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन हुए थे।
उनसे बहुत उम्मीदें थी, केंद्र सरकार के समक्ष रीढ़ को सीधी रखने की लोगों की उम्मीद थी जो उनके पूर्ववर्ती न्यायधीशों के फैसलों से एक वर्ग में उपजे न्यायालय की साख पर चिंता के कारण थी तो दूसरे उनकी गोद ली हुई दो अपाहिज बेटियां।
उम्मीद थी कि जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ अपने दो साल के कार्यकाल में न्याय के सिद्धांत को व्यवहारिकता में बदल देंगे और कम से कम वह केंद्र की मोदी सरकार के साथ खड़े तो नहीं ही दिखाई देंगे मगर 2 साल के कार्यकाल के अंत में जाते जाते वह नरेंद्र मोदी की आवभगत और स्वागत में खड़े दिखाई दिए।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने और रिटायरमेंट करीब आते आते ही जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने जो बयानबाजी, मीडिया फ्रेंडली चरित्र और सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज कराई, भाषणबाजी की, कोर्ट में वकीलों को धौंस दी और अपने ही बेंच के जजों से बहस की उससे लोगों में उनकी छवि खंडित हुई।
इसी कारण वह आलोचना के घेरे में रहे। उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ एडवोकेट दुष्यंत दवे कह रहे हैं कि जस्टिस चंद्रचूड़ को कोई याद नहीं रखना चाहेगा तो महमूद प्राचा कह रहे हैं कि जस्टिस चंद्रचूड़ घटिया इंसान हैं और इनका फेयरवेल नहीं होना चाहिए था, तो कोई कह रहा है कि इनके फेयरवेल में 70% वकील जाना ही नहीं चाहते थे, वैकल्पिक मीडिया और सोशल मीडिया पर उनकी भारी आलोचना हो रही है।
दरअसल भारी उम्मीदों का बोझ लिए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के शपथ के पहले ही न्यायपालिका की छवि और न्याय के चेहरे को बचाए रखने की उम्मीद से देश उनको देख रहा था क्योंकि इनके किसी पूर्ववर्ती ने राज्यसभा की सदस्यता लेकर खुद के मैनेज होने को सिद्ध किया तो किसी की पैंट ही सरकार के सामने सार्वजनिक रूप से उतर गई।
दो साल के अपने कार्यकाल में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने न्याय की देवी की आंखों से पट्टी खींच कर हटा दी और यह संदेश दिया कि अब कानून और अदालतें उनके सामने पेश हुए लोगों को देख पहचान सकती हैं और उसी आधार पर फैसला देंगी। महत्वपूर्ण मामलों में आधा अधूरा फैसला देकर लीपापोती के अतिरिक्त सरकार की चापलूसी के लिए आपको याद किया जाएगा।
जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ऐसे चीफ़ जस्टिस के तौर पर याद किए जाएंगे जिन्होंने अपनी अदालत में चोर को पकड़ा , चोरी पकड़ी, “चोर ने चोरी की यह फैसला भी दिया” और फिर चोरी का सामान चोर को देकर उसे बरी कर दिया।
कम से कम ऐसे कुछ फैसलों का ज़िक्र हमेशा आएगा…
1- महाराष्ट्र सरकार:- महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को गिराकर बनाई शिंदे सरकार को जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने “अवैध” कहा , मगर सरकार चलती रही , उच्चतम न्यायालय के महाराष्ट्र की सरकार को अवैध घोषित करने के बावजूद शिंदे सरकार के खिलाफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कोई फैसला नहीं दिया और शिंदे की अवैध सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया।
2- चंडीगढ़ मेयर चुनाव:- जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस मामले में पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह की चोरी पकड़ी, अनिल मसीह को लोकतंत्र का हत्यारा कहा , फैसला भी पलटा मगर चोरी करने वाले को बख्श दिया।
लोकतंत्र के हत्यारे अनिल मसीह एक माफ़ी मांग कर बच गये।
3- बाबरी मस्जिद:- यह फैसला चोर को चोरी किए माल को देने का स्पष्ट मामला था जिसमें जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और अन्य चार जजों वाली बेंच ने फैसला दिया कि मुग़ल बादशाह बाबर ने कोई राम मंदिर नहीं तोड़ा , बाबरी मस्जिद किसी राम मंदिर को तोड़ कर नहीं गिराई गई, बाबरी मस्जिद के नीचे राम मंदिर का कोई ढांचा नहीं है , बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर 1992 को शहीद करना एक अपराधिक घटना थी , बाबरी मस्जिद में चोरी से मूर्ति रखना अपराधिक घटना थी।
इसके अतिरिक्त नरेंद्र मोदी और अमित शाह से जुड़े सभी मुकदमों में वह रीढ़ की हड्डी सीधी नहीं रख सके और जस्टिस लोया केस को तो उन्होंने बांबे हाईकोर्ट से मंगाकर अमित शाह को क्लीन चिट दे दी।
ऐसे ही अडाणी के हर मामले को रफा-दफा करना, उमर खालिद, शरजिल इमाम, खालिद सैफी, गुलफ़िशा की बिना ट्रायल और बिना सुनवाई के पिछले 5 सालों से निरंतर कैद में रखने पर चुप्पी के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। उन्हें याद किया जाएगा वर्शशिप ऐक्ट -1991 के बावजूद ज्ञानव्यापी मस्जिद के सर्वे की अनुमति देना और EVM मामले में लीपापोती करना।
-सुदेश आर्या