

-सुदेश आर्या
समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में लक्ष्मी रूपी रत्न भी एक था। इस लक्ष्मी रत्न का प्रादुर्भाव कार्तिक की अमावस्या को हुआ था। उस दिन से कार्तिक की अमावस्या लक्ष्मी पूजन का पर्व बना। इस अवसर पर लक्ष्मी के साथ गणेश पूजा का भी विधान है।
कुछ लोगों की यह मान्यता है कि भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष श्रीराम लंकेश्वर रावण पर विजय प्राप्त कर भगवती सीता सहित जब अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए दीपों से घरों को सजाया। श्री राम के अयोध्या लौटने के प्रसंग को दीपावली से संबद्ध कर दिया गया। इसलिए वर्तमान में दीपावली मनाने का यह भी एक प्रमुख कारण माना जाता है।
वस्तुतः दीपावली कृषि की गौरव महिमा बढ़ाने वाला त्यौहार है। यह दीपावली शरद की सुहावनी ऋतु में मधुर मधुर ठंड और सुनहरी धूप के बीच फसल की बालियां झुमकों के रूप में पककर फसल के घर आने के दिनों में यह त्यौहार आता है तो स्वभावतः चारों ओर आनंद और उल्लास छा जाता है। कड़े श्रम के बाद घर आई अन्नरूपी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए घर आंगन लीपपोत कर साफ सुथरे किए जाते हैं और अभावों के कूड़े करकट को झाड़बुहार कर एक किनारे फेंक दिया जाता है। प्रत्येक घर में नए कपास की बाती और नए तिल या सरसों के तेल से नया दीप संजोया जाता है।
दीपावली का सबसे बड़ा आनंद तो इसमें है कि अपने आनंद में आप उन लोगों को भी भागीदार बनाकर देखिए, जो कम भाग्यशाली हैं या जिनके पास अपनी झोंपड़ी में दीपक जलाने को तेल भी नहीं है, बच्चों को देने के लिए खील बताशे भी नहीं हैं। उनकी खुशी में भागीदार बनकर देखिए, आपकी कोठी के दीपों की चमक सौ गुनी हो जाएगी। सच्चे शब्दों में दिवाली का अर्थ यही है कि अनपढ़ों को पढ़ाओ, अज्ञान का अंधकार हटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाओ।