मानव एक वार्म जीव है, जिसके शरीर को निरंतर 37 डिग्री का तापमान मेंटेन करना पड़ता है। इवोल्यूशनरी नजरिये से ये एक मुश्किल बात है। इस तापमान को निरंतर मेंटेन करने के लिए रोज खाना ठूसने की अनिवार्यता हो जाती है।

आजकल तो जोमैटो-स्विगी का युग है पर एक समय ऐसा भी था, जब खाना ढूंढना और जिंदा बचे रहना भी हमारे पूर्वजों के लिए बड़ी मुश्किल बात होती थी। उसके बावजूद प्रकृति ने यही तापमान हमारे लिए चुना, उसका कारण है – हमारा अपने आसपास फंगी-वायरस-बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीवों से घिरा होना। 37 डिग्री तापमान पर ज्यादातर सूक्ष्मजीव न्यूट्रलाइज हो जाते हैं। जो नहीं होते, और बदमाशी दिखाएं – उनसे लड़ने के लिए शरीर सबसे पहले तापमान की सेटिंग बदल कर देखता है – आपको बुखार देकर !!
अब अगर हमारे शरीर से बाहर का तापमान 37 डिग्री से ज्यादा हो जाये तो ये हमारे लिए चिंता की बात है। इस स्थिति में शरीर कितना भी कोशिश कर ले, खुद को ठंडा नहीं रख सकता। बायोलॉजिकल फंक्शन ठप्प होने लगते हैं। मौत भी हो सकती है।
अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा है, तो हम दिल्ली के 40-45 डिग्री के तापमान में जिंदा क्यों हैं? वो इसलिए क्योंकि आजकल जो 40 डिग्री चल रहा है, वह Dry Temperature है, यानी बाहरी क्षेत्र का तापमान। जैसे मैंने अभी कहा कि बॉडी पसीने के सहारे और दूसरे कुछ मेथड्स के सहारे अपना टेम्परेचर रेगुलेट करना जानती है। इसलिए बाहरी तापमान कुछ भी हो, मनुष्य का शरीर जिस तापमान को महसूस करता है, उसे Wet Bulb Temperature कहते हैं।
यही हमारे काम की चीज है। वेट-बल्ब 25 डिग्री से नीचे हो तो चंगा सी। 26 से 31 के बीच हो तो खतरा है, पर जीने लायक है जी। 31 से जितना ऊपर, उतना ही तबियत खराब और 35 से ऊपर जाते ही – टॉय टॉय फिश !!
अब फिलहाल ऐसी कोई ऑनलाइन संस्था या पोर्टल नहीं है, जो वेट-बल्ब का रियल टाइम अपडेट देती हो। इसलिए मैंने सारे एटमोस्फेरिक कंडीशन संज्ञान में लेकर ग्रोक भाई को जून महीने में दिल्ली का वेट-बल्ब निकालने को कहा, जो कि “30-31 डिग्री” आया – मतलब रेड मार्क की दहलीज पर !!
साल दर साल गर्मी का लेवल बढ़ता जा रहा है। कारण – सबसे पहले तो एसी… आज हर घर मे 2-4 एसी होना आम बात है। अब एसी आपका कमरा ठंडा करेगा तो कमरे की गर्मी भी कहीं न कहीं डंप करेगा ही। इसलिये आज आउटडोर एरिया गर्म से गर्म होते जा रहे हैं। उसके बाद पेड़ों का कटना, पॉल्यूशन बगैरह है ही। एक और बड़ा कारण – जुगाली करने वाले जानवर, जैसे गाय, भैंस, बकरी इत्यादि।
इन जीवों का डिजेस्टिव सिस्टम अनेरोबिक होता है। अर्थात, इनके पेट का खाना वो सूक्ष्मजीव ब्रेकडाउन करते हैं, जो ऑक्सीजन का इस्तेमाल नहीं करते। ऐसे जीवों द्वारा भोजन ब्रेकडाउन करने पर एंड प्रोडक्ट्स में से एक होती है – मीथेन – जो CO2 के मुक़ाबले 25 गुना गर्मी होल्ड करने में सक्षम होती है। आज विश्व में 5 अरब से ज्यादा जुगाली करने वाले जीवों की संख्या ग्लोबल वार्मिंग बढने का एक बड़ा कारण है। बताने की जरूरत नहीं कि इनमें से 90% जीवों की जनसंख्या का एकमात्र कारण “मांस-उद्योग” है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इसी तरह चलता रहा तो अगले 50-70 सालों में भूमध्य रेखा से 30 डिग्री उत्तर और दक्षिण के बीच में पड़ने वाले क्षेत्रों में रहना असंभव हो जाएगा – अपना भारत भी इसी क्रॉस-सेक्शन में पड़ता है।
ऐसा न हो, इसे सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम आज से ही उठाना शुरू करें। हमारे वंशजों का पृथ्वी पर क्या भविष्य होगा, ये हमारा आज ही तय करेगा।