स्वदेश बुलेटिन
आश्चर्य है लोगों ने यकीन कैसे कर लिया कि एक स्त्री सौ पुत्रों को जन्म कैसे दे सकती है?
अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय।
स्त्री में कुछ ईश्वर प्रदत्त गुण हैं, उसी में एक है संतानोत्पत्ति।
सवाल है दुशाला जो एक मात्र बेटी थी, को लेकर 101 बच्चों को कैसे जन्म दिया, जबकि 9 महीने में मानव शिशु पैदा होता है और ये ही हकीक़त है। यानी 75 वर्ष तक गांधारी को बच्चे होते रहे अनवरत। 90 वर्ष की आवस्था तक बच्चे कैसे से पैदा हुए। किसी नें इस पर प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा किया?
महाभारत के अनुसार कहानी है कि जब गांधारी को दो वर्ष तक गर्भधारण के बाद भी बच्चा उत्पन नहीं हुआ तो उहोने अपने पेट मे मुक्के मारे जिससे गर्भ गिर गया जो माँस की तरह लोहे का गोल पिंड था।
तब गांधारी ने अपने गुरु वेद व्यास का स्मरण किया। वेद व्यास जी ने उस माँस के लोहे के पिंड के सौ टुकड़े करके घी से भरे सौ कुंडों में डालकर दो वर्ष बाद खोलने को कहा। जिसके अनुसार सौ पुत्रों का जन्म हुआ। अगर ये सत्य होता तो गांधारी के सौ पुत्रों की आयु एक समान होनी चाहिए थी। कुंड से निकले पुत्र एक साथ ही तो अपने कुंड से बाहर आए होंगे।
ये कैसे संभव है? अब इसको भी भगवान का चमत्कार बोल दो!
पहले लोग अनपढ़, तर्क वितर्क करने में अक्षम थे जो आपकी ऐसी ऐसी कहानियां, जो सम्भव हों ही न उनको इतना अनपढ़ों के दिमाग़ मे ठूंस दिया कि तर्क करे कौन करे। तुम्हारी ये लोहे के पिंड से मटके में भरकर सौ कौरवों के पैदा होने की कहानी निहायत बेवकूफ़ी से भरी है।
जिन बातों पर जो तर्क करे उसे भगवान का निंदक कह दो।
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