सरकार की मदद से शुरू में मुफ़्त इंटरनेट देकर, 2016 में लांच हुआ JIO मुश्किल दौर में है और उसे अपने 45 करोड़ यूज़र बचाने के लिए अदालत जाने की धमकी देनी पड़ रही है।
दरअसल अभी तक जगह जगह टावर लगाकर इंटरनेट और फोन काल की सुविधा पहुंचाई जा रही है। अर्थात् नो टावर नो सिग्नल, नो इंटरनेट। इसमें प्रति टावर ₹5000 से ₹60000 तक जगह का किराया, जनरेटर खर्च, मेंटेनेंस इत्यादि मिलाकर प्रति टावर लंबा खर्च पड़ता है जिसका खर्च फोन काल और डाटा की लागत में शामिल होता है।
इसके अतिरिक्त भारत की टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम की नीलामी में पैसे और सरकार को मोटी फीस देनी पड़ती है, JIO और Airtel, VI तब चलता है। अब सेटेलाइट इंटरनेट के ज़रिए एलन मस्क की स्टारलिंक और एजेफ बेजोस की एमोज़ोन क्वीपर टावर की जगह सेटेलाइट के माध्यम से भारत में इंटरनेट बेचने आ रहे हैं।
दरअसल धरती के चारों तरफ़, एलन मस्क और एजेफ बेजोस ने सेटेलाइट का जाल बिछा रखा है जिसके माध्यम से वह देश में इंटरनेट और वायस काल नये साल में उपलब्ध कराने जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय देशों से हुई सन्धि और सेटेलाइट लिंक स्पेक्ट्रम कानून से बंधे होने के कारण भारत इस सेटेलाइट स्पेक्ट्रम को ना तो नीलाम कर सकता है ना ही कोई मोटी फीस ले सकता है। उसे केवल प्रशासनिक अनुमति देनी होगी। कारण? क्योंकि स्पेस सबका है।
कहने का मतलब यह है कि ना टावर का खर्च ना स्पेक्ट्रम नीलामी का खर्च ना सरकार को दी जाने वाली मोटी फीस, सीधे सेटेलाइट से फोन का कनेक्शन।
आंकड़ों के अनुसार यह दोनों सेटेलाइट लिंक कंपनियां भारत की टेलीकॉम कंपनियों को ध्वस्त कर देंगी जिसमें सबसे अधिक नुकसान 45 करोड़ यूजर वाले जिओ, 20 करोड़ यूजर वाले Airtel को होगा।
एलन मस्क धरती के चारों तरफ़ सेटेलाइट का जाल बिछा रहा था जिससे बिना टावर और स्पेक्ट्रम नीलामी के खर्च किए दुनिया भर को सेलुलर सेवा प्रदान की जा सके।
“लेकिन एलोन मस्क का उसका सेटेलाइट कनेक्शन जिओ के मुकाबले काफी महंगा है, इसलिए जिओ को इतना भी जल्दी डरने की जरूरत नहीं है।” अलबत्ता जिओ को अपने रेट अभी बहुत घटाने होंगे।
-सुदेश आर्या