मरने से पहले जीना सीख लो

स्वदेश बुलेटिन

आजकल हर उम्र के लोगों में से कोई न कोई हर रोज अंदर ही अंदर ख़त्म हो रहा है। लास्ट कोई फोटो कब क्लिक की याद नहीं! लास्ट बढ़िया फेवरेट ड्रेस कब पहनी थी याद नहीं! चाय की टपरी में कब दांत फाड़े थे याद है! कब खुलकर अपने प्यार का इज़हार किया याद नहीं!

बहुत है ऐसे जवान जिन्होंने जीवन में कभी कोई नशा न किया, न ही कभी चाय पी, न दारू न सिगरेट! बाहर से सब हँसमुख चेहरे हैं। रोजमर्रा की तरह घर आओ डिनर करो और सो जाओ बिना यह सोचे समझे कि आज की रात जीवन की आख़िरी रात होने जा रही है।

मौत कभी-कभी कितनी कम आडम्बरमयी होती है कि हमें उसके आने का आभास ही नहीं होता। वह दबे पाँव आती है और हाथ पकड़ कर संग ले जाती है। इन्हीं जवानों की जीवन इहलीला समाप्त करने वाला मनहूस न्यूरोट्रांसमीटर है एड्रेनेलिन।

संसार में ऐसे हार्टअटैक से करीब 40% लोग मरते है जिनको कभी हार्ट में कोई प्रॉब्लम होती ही नहीं न बीपी, न ब्लॉकेज। इन सब कारणों का कारक क्या है-“इमोशनल स्ट्रैस”

आश्चर्य की बात नहीं, स्ट्रैस भरी जीवनशैली में जो दिल के दौरे का कारण बन सकता है वो है Arrhythmia.

आप टूट चुके हैं, पर फिर भी आपको दुनिया को दिखाना होता है कि आपको कोई फ़र्क नहीं पड़ता। बाहर से आप हँसते है, दिनचर्या के सारे काम करते हैं, ऑफिस के काम पर ज्यादा फोकस करते हैं, हर वक्त खुद को व्यस्त रखते हैं। इन सबको अंदर कहीं अपने शरीर के कोने में धंसाकर आप दिन गुजार देते हैं, रातें बिता देते हैं। दुनिया आपकी तारीफ़ करती है कितना ज़िदादिल इंसान है। इतनी तकलीफ़ में है और फिर भी मुस्कुरा रहा है।

आप इस सो कॉल्ड “जिंदादिल” इमेज़ को बनाकर खुद को योद्धा समझते हैं और फिर अकेले में भी अपने इस इमेज़ से बाहर निकल नहीं पाते। जब अकेले होते हैं तब भी लगता है मैं रो नहीं सकता, मैं टूट नहीं सकता, मैं हार नहीं सकता। पर असल में आप भाग रहे होते हैं खुद से और जा रहे हैं अपनी मौत के क़रीब।

तो अब सबसे पहले स्वीकृति करनी है सत्य की। मानना है कि आपको स्ट्रैस है और यह एक बड़ा मारक रोग है। फिर चिंतित रहने की रट छोड़नी है। अब युद्ध के लिए चलिए, लेकिन एकदम आहिस्ता-आहिस्ता ठण्डी साँसों के साथ।

वॉकिंग और व्यायाम (खासकर यूट्यूब से कार्डिओ कसरत सीख लो) आज से चालू कर दो। रोज हर रोज कोई बहाना नहीं। आप करते जाएँगे, शरीर बेहतर होता जाएगा। आसान व्यायामों से शुरू करिए, धीरे-धीरे स्तर बढ़ाइए। अपने-आप शरीर बेहतर होगा। कार्डिओ कसरत से बने एंडोर्फिन हॉर्मोन्स एड्रेनेलिन के लेवल को घटा देंगे।

इतना ही आपके वश में है इतना ही आप कर सकते हैं बस। हर रोग में पर्चे में दवाई नहीं दिया जाता। पहले प्रीवेंशन की राह बताई जाती है। अमर तो कोई है नहीं लेकिन बेमौत मरो इससे अच्छा पहले जीना सीख लो ! प्रकृति स्वास्थ्य है, तो प्रकृति रोग भी है। रोग से मनुष्य ने लड़कर जीवन जीता है। अन्यथा प्रकृति तो मृत्यु चाह चुकी थी।

-सुदेश आर्या

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