-कुलभूषण शर्मा
हरिद्वार। अनुभाग-02 के पत्र संख्याः 313752 दिनांक 14 जुलाई 2025 का सन्दर्भ ग्रहण किया जाए जिसके द्वारा उत्तराखण्ड राज्य कर्मचारियों की आचरण नियमावली 2002 के नियम-22 का अनुपालन सुनिश्चित कराने हेतु समस्त विभागाध्यक्षो को निर्देशित किया गया है।

शासन के उक्त पत्र दिनांक 14 जुलाई 2025 के प्रस्तर 2 (3) में उल्लेख है कि “कोई सरकारी कर्मचारी जो अपने एक मास के वेतन अथवा 5,000.00 रु०, जो भी कम हो, से अधिक मूल्य की किसी चल सम्पत्ति के सम्बन्ध में क्रय-विक्रय के रूप में या अन्य प्रकार से कोई व्यवहार करता है, तो ऐसे व्यवहार की रिपोर्ट तुरन्त समुचित प्राधिकारी को करेगा। प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय किसी ख्याति प्राप्त व्यापारी या अच्छी साख के अभिकर्ता के साथ या द्वारा या समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति से इस प्रकार का कोई व्यवहार नही करेगा।”

प्रदेश अध्यक्ष को अवगत कराया गया कि वर्तमान में लागू सातवें वेतनक्रम एवं वर्तमान महंगाई दर के अनुसार चल सम्पत्ति के क्रय विक्रय हेतु अत्यधिक न्यून धनराशि निर्धारित की गयी है। वर्तमान महंगाई दर के अनुसार दैनिक जीवन में अधिकाशं उपयोगी वस्तुओ एवं आवश्यक सामग्री का मूल्य 5000.00 रु० से अधिक है। ऐसे परिस्थिति में दैनिक जीवन में आवश्यक सामग्री क्रय के सम्बन्ध में बार बार उच्च स्तर को अवगत कराये जाने वाली कार्यवाही में समय की हानि तथा शासकीय कार्य समयान्तर्गत निस्पादन में समस्या उत्पन्न होगी। इस प्रकार की शर्तें अत्यन्त अव्यावहारिक एवं कर्मचारी वर्ग के हितों के प्रतिकूल हैं।
आज के समय में सामान्य घरेलू आवश्यकताओं के लिए भी पाँच हज़ार रुपये से अधिक के चल सम्पत्ति (जैसे मोबाइल, घरेलू उपकरण, वाहन के पुर्जे आदि) के क्रय-विक्रय करना सामान्य बात है।
जिलाध्यक्ष ललित मोहन जोशी ने कहा कि इस प्रकार का प्रतिबन्ध न केवल कर्मचारी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि प्रत्येक छोटे लेन-देन पर अनावश्यक शासकीय अनुमोदन की जटिलता बढ़ा देता है।इसके अतिरिक्त, हर छोटे क्रय पर रिपोर्ट करना व्यावहारिक नहीं है। अच्छी साख वाले व्यापारी की पूर्व पहचान और अनुमति प्राप्त करना अनेक ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए सम्भव नहीं है। यह प्रावधान अनावश्यक प्रशासनिक बोझ तथा कर्मचारी की निजता में हस्तक्षेप के समान प्रतीत होता है।
जिलाध्यक्ष ने कहा कि वर्ष 2002 के शासनादेश को 23 वर्ष पश्चात वर्ष 2025 में लागू करते समय नियमों का परीक्षण व निरीक्षण अवश्य किया जाना चाहिए था क्योंकि तब और अब के वेतन, भत्तों, मंहगाई, वित्तीय एवं सामाजिक स्थितियों-परिस्थितियों में बड़े बदलाव हो चुके हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस आदेश का औचित्य समझ से परे है। कर्मचारियों द्वारा आशंका व्यक्त की गई है कि गोल्डन कार्ड की विसंगतियों, पुरानी पेंशन की मांग, 10,16,26 वर्ष में ए सी पी की मांग, शिक्षकों की रुकी हुई पदोन्नतियों आदि महत्वपूर्ण विषयों से ध्यान भटकाने के लिए शासन द्वारा इस प्रकार के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
उन्होंने अनुरोध किया कि प्रदेश संगठन के स्तर पर इस निर्णय के विरोध में शासन से तत्काल वार्ता कर इस प्रावधान को निरस्त करवाने हेतु पहल की जाए, ताकि कर्मचारियों को अनावश्यक प्रतिबंधों और प्रक्रियाओं से राहत मिल सके।
प्रदेश अध्यक्ष सोहन सिंह रावत ने शीघ्र ही इस मुद्दे पर ठोस एवं सकारात्मक कार्यवाही का आश्वासन दिया।
ज्ञापन प्रेषण में जिला महिला उपाध्यक्ष सुधा तिवारी, संयुक्त मंत्री मनोज चंद, जिला सम्प्रेषक अमित ममगाई, संयुक्त मंत्री देवेंद्र सिंह रावत, संगठन मंत्री संतोष डबराल, सदस्य विनीत चौहान एवं समाजसेवी देवेंद्र सिंह चौहान उपस्थित रहे।