– सुदेश आर्या
सोनाक्षी सिन्हा के नाम का सहारा लेकर तमाम लड़कियों पर छींटाकशी के बाद अब कुमार विश्वास को सैफ और करीना के बच्चे तैमूर के नाम से परेशानी हो रही है और उस मासूम के लिए वो कह रहे हैं कि हम उसे हीरो तो छोड़ो विलेन भी नहीं बनने देंगे।

हकीक़त यह है कि दो नरेटिव ऐसा सेट किया गया है कि हम इतिहास में हुई घटनाओं को वर्तमान की सामाजिक और भौगोलिक स्थितियों में देखते हैं और राज्य प्राप्त करने की लड़ाइयों को शासक और सैनिकों के धर्म के विरोध में मान लेते हैं।
इससे इतर यदि इतिहास में किसी नाम के व्यक्ति ने कुछ गलत किया है तो उस नाम को कोई ना रखे यह यदि होता रहे तो आने वाली जनरेशन के लिए शब्दों का अकाल पड़ जाएगा। क्योंकि एक मात्र उदाहरण तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम वाले “नाथूराम” ने भी तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की थी। हर नाम का कोई व्यक्ति कभी दुर्दांत बलात्कारी रहा है तो कभी हत्यारा।
परशुराम ने तो 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया। यहां तक कि पिता के कहने पर अपनी ही जननी का गला काट दिया था। फिर भी बहुत से क्षत्रिय अपना नाम परशुराम रखते ही हैं। “आसाराम” और “राम रहीम”, रामपाल भी उदाहरण हैं जिन्होंने ‘राम’ के नाम को ही बदनाम कर दिया और हिंदू महिलाओं का ही बलात्कार किया।
मगर फिर भी “राम” नाम रखते हैं लोग और रखना भी चाहिए। शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में कुछ नहीं रखा।
दरअसल कवि महाराज की समस्या कुछ और है और वह इसीलिए रह रह कर केंचुल बदलते रहते हैं, उनके सामने ही उसी स्टेज पर उनके जूनियर रहे लोग राजनीतिक रूप से बहुत आगे बढ़ गए, संसद में पहुंच गए और यह तमाम प्रयासों के बावजूद कुछ नहीं कर सके। इसलिए कथाओं में सांप्रदायिकता फैलाने के काम में लगे हुए हैं।
सफ़ल होने के लिए खुद को विश्वसनीय साबित करना होता है, न कि नाम, जाति पाति और धर्म को लेकर किसी पर छींटाकशी करना। रही बात तैमूर नाम के बच्चे के विफल फिल्मी खलनायक बनने की बात, तो वो समय देखेगा। फिलहाल तो आप ‘विश्वास’ नाम की इज्ज़त रखिए।
जैसा नाथूराम का नाम कोई लिखता नहीं, वैसे ही अब कुमार बकवास भी कोई नहीं रखेगा
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