आज योगी, यति, साधु संत, अमीर गरीब सब चाय के भक्त बन चुके हैं। चाय पीने के बाद जो थकावट दूर हुई मालूम होती है वह उस अवस्था से अधिक ख़तरनाक होती है जो चाय पीने से पहले थकावट की हालत मनुष्य की रहती है। कारण, थकावट में जब चाय पी जाती है तो वह अपनी मादकता से हमारे सजग मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं पर अपना विषवत् प्रभाव डालकर उनके अनुभव करने वाली शक्तियों को सुला देती है जिससे अपनी थकावट की बात भूलने के लिए मनुष्य बाध्य हो जाता है।चाय के सेवन से शरीर की जीवन शक्ति का क्षय होता है। चाय पीने से फेफड़े द्वारा कार्बोलिक एसिड गैस का निष्कासन अधिक होता है जो इस बात का द्योतक तक है कि जीवनी शक्ति का क्षय अधिक हो रहा है। चाय से अजीर्ण, मंदाकिनी तथा कोष्टबद्धता जैसे भयंकर रोग उत्पन्न हो जाते हैं। डॉक्टर एडवर्ड स्मिथ ने अनुभव करने के लिए स्वयं दो ओंस कहवा के तत्व को, जिसमें लगभग 7 ग्रेन कैफीन रही होगी पीया और वह बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। इसलिए जब डॉक्टर लोग कैफीन विश्व को जब दवाई के रूप में देते हैं तो इसकी मात्रा दो या तीन ग्रेन से अधिक नहीं होती। इसका सबसे बड़ा असर स्नायुओं पर पड़ता है जिससे अनिद्रा और मन की अशांति पैदा होती है। जिनको ग्लूकोमा अथवा कोई अन्य नेत्र संबंधी रोग हैं उनके लिए तो चाय व कॉफी जहर के समान है।
इसका व्यापार व प्रचार प्रसार तो रूकने वाला नहीं है, लेकिन लोगों को अपने हित के लिए इसका प्रयोग रोक देना चाहिए।
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